गुजरात, पंजाब और राजस्थान में चलेंगी हरियाणा की कंडम स्कूल बसें, फाइलों का ढेर लगना शुरू

गुजरात, पंजाब और राजस्थान में चलेंगी हरियाणा की कंडम स्कूल बसें, फाइलों का ढेर लगना शुरू

हरियाणा के शिक्षण संस्थानों की पुरानी हो चुकी बसें अब नए रूप में गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चलेंगी। निजी स्कूलों की ओर से अपनी खटारा हो चुकी पुरानी बसों को दूसरे प्रदेशों में या एनसीआर से बाहर के जिलों में बेचा जा रहा है। इसके लिए परिवहन विभाग के पास एनओसी लेने के लिए फाइलों का ढेर लगना भी शुरू हो गया है।करनाल जिले की बात करें तो अब तक यहां से 34 बसों की एनओसी गुजरात के झूनागढ़, पंजाब के संगरूर के लिए कट चुकी है। जबकि कुछ स्कूलों ने छत्तीसगढ़ के जशपुर और राजस्थान के झूंझनू आदि में बसे भेजने की योजना बनाई है, इनकी फाइलें तैयार की जा रही हैं। इसी तरह प्रदेश में करीब 650 बसों की एनओसी जारी करने की प्रक्रिया चल रही है।

 अधिकारियों के अनुसार, परिवहन विभाग के पास करीब 41 हजार बसें पंजीकृत हैं, इनमें से करीब 35 हजार की जांच हुई है। इनमें से करीब 20 प्रतिशत बसों के पास फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं थी। करीब एक हजार बसें ऐसी भी रही, जिनकी समय सीमा लगभग पूरी हो चुकी है या पूरी होने वाली है, अब इन बसों को स्कूल प्रदेश से बाहर भेजने में लगे हैं।महेंद्रगढ़ में हुए स्कूल बस हादसे में बच्चों की मौत के बाद प्रदेश में सरकार के निर्देश पर परिवहन विभाग की ओर स्कूली वाहनों की गहनता से जांच की गई थी। इस दौरान कई ऐसे वाहन भी पकड़ में आए, जिनके पास पिछले चार साल से फिटनेस प्रमाणपत्र ही नहीं है, ऐसे वाहनों का बकाया टैक्स जमा करते हुए स्कूल संचालकों ने वाहनों की पासिंग कराई। वहीं जो वाहन 15 साल की समय सीमा पूरी करने वाले हैं, ऐसे वाहनों को दूसरे प्रदेश की शिक्षण संस्थाएं एवं ट्रांसपोर्टरों को यहां से एनओसी लेकर बेचा जा रहा है। वहीं जो वाहन 10 साल की समय सीमा पूरी कर चुके हैं, उन्हें एनसीआर से बाहर के जिले कैथल, कुरुक्षेत्र और यमुनानगर आदि के स्कूलों को बेचा जा रहा है। ताकि जांच में पकड़े न जाएं।छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी बसें ज्यादा चलती हैं। ऐसे में स्कूल संचालकों ने वहां के ट्रांसपोर्टरों के साथ संपर्क करके अपनी पुरानी बसों को बेच रहे हैं। करनाल के कई नामी स्कूलों की बसें गुजरात में एक शिक्षण ट्रस्ट और ट्रांसपोर्टर को बेची गई हैं। जोकि इन बसों को वहां पर मोडिफाई करके नया रूप देकर संचालन करेंगे। अन्यथा इन्हें अपनी पुरानी बसों को या तो कबाड़ में बेचना पड़ता या फिर पकड़े जाने पर विभाग इंपाउंड करता। बेचने पर कीमत भी ठीक मिल रही है।