इस बार बांधें अनोखी और पहाड़ की पहचान को संजोती एपण वाली राखी

इस बार बांधें अनोखी और पहाड़ की पहचान को संजोती एपण वाली राखी
एपण वाली राखी

नैनीताल: अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने से ही वह सुरक्षित नहीं रह सकती। उसे सुरक्षित बनाने का सबसे बेहतरीन जरिया है उसे नई पीढ़ी के हवाले कर देना जिससे कि वह उसमें वक्त अनुरुप कुछ बदलाव करके अपना ले। इस तरह यह पीढ़ी दर पीढ़ी हर बार नए नए रुप में विद्यमान रहेगी। उदाहरण के लिए एपण कला को ही देख लें। पारंपरिक रुप से चावल के आटे से बने कसार से घर की देहली या मंदिर में बनाई जाने वाली लोक कला को जब नई पीढ़ी ने अपनाया तो कसार की जगह उसमें पेंट का समावेश किया। उसे केवल देहली या पूजा के स्थान तक ही सीमित न रहने देकर उसे पेंटिंग के रुप में दीवारों तक पहुंचा दिया। आज एपण कला अपने नए रुप में न केवल बेहद लोकप्रिय कला बन गई है बल्कि उसमें आजीविका के भी अच्छे अवसर हैं। लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं जो इस कला को नया फलक दे रहे हैं। ऐसा ही एक और नया  अभिनव प्रयास किया है उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी खाती ने। उन्होंने एपण को घर के दरवाजों, मंदिर और दीवारों से अब हाथ की कलाई तक पहुंचा दिया है। जी हां उन्होंने एपण को राखी का एक नया और अनोखा रुप दिया है। इन राखियों की खासियत यह है, कि इनमें उत्तराखंड के रिश्तों की मिठास राखी में अंकित नामों से महसूस होती है जैसे ददा, बैणी, भुला, भैजी, बौज्यू, दादी आदि। ऐपण राखियां देखने में बहुत आकर्षक है, यही कारण है कि इन राखियों की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बहुत बड़ी मात्रा में आ रही है। पर्यावरण की दृष्टि से भी ये राखियां सुरक्षित हैं क्योकि इन राखियों में प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया गया है। बता दें  मीनाक्षी खाती ऐपण गर्ल के नाम से भी जानी जाती है, तथा ऐपण कला में निरंतर नये प्रयोग कर रही है।
“मीनाकृति - द ऐपण प्रोजेक्ट” के जरिए आप भी ऑनलाइन इन राखियो को मंगवा सकतें है।