उत्तराखंड के लिए भरोसेमंद सहारा है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 

उत्तराखंड के लिए भरोसेमंद सहारा है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 
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देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही उत्तराखंड के किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजाना की सौगात मिली है। हिमालय की गोद में बसे होने के कारण उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं के लिए अत्यंत सुभेद्य है। इन आपदाओं मसलन अतिवृष्टि, बाढ़, सूखा, बर्फबारी आदि कारणों से किसानों को व्यापक हानि भी होती है। पर्वतीय भूभाग होने के कारण उत्तराखंड में कृषि क्षेत्र अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। इसके अलावा राज्य पर्वतीय व मैदानी भागों में बसा है। जहां पर्वतीय भूभाग में कृषि से अधिक बागवानी की जाती है वहीं मैदानी भागों में अपेक्षाकृत खाद्यान्नों की उपज अधिक होती है। इस लिहाज से किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाने के प्रयासों के रूप में फसल बीमा योजना का संचालन महत्वपूर्ण प्रयास है।
उत्तराखंड  में  2016 से कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रदेश के समस्त जनपदों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाई जा रही है। योजना के तहत वर्तमान में एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AIC) किसानों का बीमा कर रही है। प्रदेश में योजना में दो स्तरों पर चलाई जा रही है। जहां कृषि विभाग द्वारा संचालित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत चार फसलों धान, मण्डुवा, गेहूं और मसूर को सम्मिलित किया गया है। वहीं पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना उद्यान विभाग द्वारा संचालित की जा रही है। जिसमें खरीफ में आलू, अदरक, टमाटर, मिर्च, फ्रैंचबीन तथा रबी में सेब, आड़ू, माल्टा, संतरा, मौसमी, आम, लीची, आलू, टमाटर एवं मटर को सम्मिलित किया गया है।
फसल बीमा योजना के आंकड़ों की बात करें तो 2016 से अब तक राज्य के सभी 13 जिलों 12 लाख 46 हजार किसानों का बीमा किया जा चुका है। 4.90 लाख किसानों को लगभग 480 करोड़ की धनराशि प्राकृतिक कारणों से उनकी फसलों की क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की जा चुकी है।इन फसलों के रकबे की बात करें तो उत्तराखंड में कुल बोए गए क्षेत्रफल का 30 प्रतिशत गेहूं के अंतर्गत आता है, इस कारण यह प्रदेश की मुख्य फसल है। धान के अंतर्गत 26 प्रतिशत और मंडुआ के अंतर्गत 8 प्रतिशत क्षेत्र आता है। वहीं दालों के अंतर्गत 6 प्रतिशत हिस्सा है। 
वहीं बागवानी में सर्वाधिक 13250 हैक्टेयर में नाशपाती, 2990 हैक्टेयर में सेब, 8284 हैकटेयर में आड़ू, 9016 हैक्टेयर में प्लम, 8068 हैक्टेयर में खुबानी आदि बागबानी फसलों की काश्तकारी की जाती है। सब्जियों में टमाटर, मटर, फ्रासबीन, मूली, बंदगोभी प्याज, शिमला मिर्च की भी खेती मुख्य रुप से की जाती है। विभिन्न जलवायु से युक्त भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण यहां फल-सब्जियों की भी प्रचुर पैदावार होती है। फलों व सब्जी की बागवानी काफी जोखिम से भरी होती है। विशेषकर आपदा प्रभावित उत्तराखंड में। इस स्थिति में किसानों को इस योजना से मदद मिल रही है।
योजना के अंतर्गत के किसानों की फसलों को कीट बीमारियों, सूखा, ओलावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं से फसल जोखिम को कम करने के लिए उनकी फसलों को बीमा कवर की सुविधा दी जा रही है। प्रदेश में सिंचित क्षेत्र में फसलों को नुकसान पर सरकार की ओर से किसानों को प्रति हेक्टेयर 17,000 रुपये मुआवजा देने की व्यवस्था है, जबकि गैरसिंचित भूमि पर प्रति हेक्टेयर 8,500 और बागवानी फसलों के प्रति हेक्टेयर 22,500 रुपये मुआवजा दिया जाता है।
आंकड़ों से हटकर सीधे जमीनी स्तर पर उतर कर लाभ लेने वाले किसानों का पक्ष जान बगैर आंकड़ों की सार्थकता साबित नहीं की जा सकती। इस लिए हमने इस योजना से लाभ उठाने वाले कुछ किसानों से बात की।
किसान सुरेंद्र सिंह राणा जो जनपद देहरादून के तहसील सिवनी के अंतर्गत पड़ने वाले ग्राम पंचायत अटाल के रहने वाले हैं। वे कई वर्षों से करीब 2 हेक्टेयर भूमि पर  सेव और टमाटर की खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि "उत्तराखंड फसल बीमा योजना का लाभ वह पिछले कई वर्षों से उठा रहे हैं आमतौर से फसलें खराब हो जाती थी उनका कोई लाभ नहीं मिलता था लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को अपनाने के बाद फसलें खराब हो जाने पर मुआवजे के रूप में उनकी भरपाई हो जा रही है।" बातचीत के दौरान सुरेंद्र सिंह राणा बताते हैं कि वे बीते कई वर्षों से टमाटर की खेती कर रहे हैं। बीते साल उन्होंने फसल बीमा योजना के तहत 8000 सालाना के प्रीमियम का बीमा लिया था और टमाटर की खेती खराब हो जाने की वजह से मुआवजे के रूप में 42000 प्राप्त हुए हैं। इसका सीधा मतलब है की सुरेंद्र सिंह राणा को उनकी बर्बाद हुई फसलों के मुआवजे के रूप में प्रीमियम के 5 गुने से अधिक पैसा केंद्र सरकार की हितकारी योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से पहुंचा है। 

फसल बीमा योजना के अंतर्गत लाभ लेने वाले अगले किसान राजेंद्र सिंह हैं। यह भी उत्तराखंड के कृषि एवं बागवानी समृद्ध क्षेत्र जौनसार बावर के त्यूणी क्षेत्र के अटाल गांव के रहने वाले हैं। बातचीत के दौरान किसान राजेंद्र सिंह बताते हैं "प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने उनको नुकसान से बचाया है। प्रदेश भर में मूसलाधार बारिश हुई जिससे फसलों का नुकसान हुआ, फसलें बर्बाद हुई लेकिन हमारी आर्थिकी पर इसका बहुत अधिक विपरीत असर नहीं पड़ा।"बकौल राजेंद्र सिंह राणा वे टमाटर, अदरक और सेब की खेती करते हैं। गत वर्ष सेब की फसल खराब हो गई। लेकिन इन्होंने 25000 का वार्षिक प्रीमियम पर क्लेम के रूप में इनको 1 लाख 3 हज़ार की धनराशि मिली है। राजेंद्र सिंह राणा ने बताया की वे करीब 6 बीघा में वो खेती करते हैं उनके 2 बीघा खेतों में सेब के करीब 400 पेड़ हैं जबकि 4 बीघा में वे टमाटर और पशुओं के चारे की खेती करते हैं। 

उस सिलसिले में आगले शख्श श्री चंद शर्मा हैं। श्रीचंद शर्मा 7 से 8 बीघा में कई तरह की फसलें करते हैं इनमें सेब, नाशपाती, अनार और नींबू की बागवानी और मंडुवा, धान, राजमा और गेहूं की खेती करते हैं। फसल बीमा योजना से पहुंचने वाले लाभ के बारे में किसान श्रीचंद शर्मा ने बताया कि "बीते साल मूसलाधार हुई बारिश में सेव और टमाटर की फसलें पूरी तरह से तहस-नहस हो गई थी। यह तो अच्छा हुआ कि मैंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की पॉलिसी ली हुई थी 20000 की वार्षिक प्रीमियम की वजह से मेरी फसलें बर्बाद होने पर मुझे 83000 से ज्यादा का क्लेम मिला है।" यानी 4 गुना से भी ज्यादा क्लेम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की वजह से किसान श्री चंद शर्मा को मिल पाया है, जो अपने आप में एक बड़ी राहत की बात है।

उत्तराखंड के एक और किसान बीरू राम ने भी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर खुलकर खुशी जाहिर की है। बीरू राम से बातचीत के दौरान उनका उत्साह देखने लायक था वीर राम कहते हैं कि बीते 4 से 5 सालों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ पहले सालों की मुकाबले बहुत ज्यादा पहुंचा है। बीरु राम बीते कई वर्षों से टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च और गेहूं की खेती करते हैं। उनके मुताबित मूसलाधार बारिश की वजह से उनकी कई फसलें बर्बाद हुई जिसमें खासतौर से मटर की फसल काली पड़ने के साथ साथ सड़ गई थी लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 5000 रु. प्रीमीयम पर उनको में 45000 का मुआवजा मिला। इससे उनकी मेहनत बर्बाद जाने से बच गई और नुक्सान की आर्थिक भरपाई हो सकी।
इस तरह यह योजना उत्तराखंड जैसी विषम भौगोलिक क्षेत्र वाले और रोजगार के लिए पलायन की मार झेलने वाले गांवो के लिए एक उन्मीद और आशा की किरण बन कर आई है। बीमित किसान आपदा के कारण अपनी फसल की बर्बादी के कारण पूरी तरह निराश्रित महसूस नहीं करते।