चुनौती देने से पहले कुछ जमीन तो तलाश लेते सिसोदिया जी!

चुनौती देने से पहले कुछ जमीन तो तलाश लेते सिसोदिया जी!
चुनौती देने से पहले कुछ जमीन तो तलाश लेते सिसोदिया जी!

देहरादून: पिछले दिनों दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उत्तराखंड आकर सरकार के वरिष्ठ मंत्री मदन कौशिक को विकास के मुद्दे पर बहस की चुनौती देकर मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास किया यानी मीडिया इंवेंट जैसा कुछ। हैरानी की बात है कि वह पार्टी जिसका प्रदेश में कोई राजनीतिक वजूद तक नहीं है वह उस पार्टी की सरकार को चुनौती दे रही है जो लगभग 10 साल राज्य में सरकार चला चुकी है और 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत हासिल कर चुकी है। यह चुनौती अगर सत्ताधारी दल को कांग्रेस की ओर से दी गई होती तो बात समझ में आती लेकिन एक ऐसी पार्टी जिसका प्रदेश में एक ग्राम प्रधान तक नहीं है न ही कोई नगर पंचायत तक में उपस्थिति वह चुनौती किस आधार पर दे सकती है।

पूर्णत: शहरी पृष्ठभूमि वाले केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली की सरकार का विकास मॉडल क्या उत्तराखंड में प्रासंगिक है? जहां का बजट अक्सर सरप्लस हो, कमाई के लिए बिना किसी अधिक निवेश के ही राजस्व जमकर आता हो वह सरकार उत्तराखंड जैसे विषम भौगोलिक स्थिति वाले प्रदेश जहां की सरकार के आय के साधन बेहद सीमित हैं किस आधार पर चुनौती दे सकती है? इस तरह तो कल के दिन तेलंगाना के सीएम आ के दे दें उत्तराखंड सरकार को चुनौती, गोवा या सिक्किम के सीएम पूछें कि बताओ भाई क्या किया है तुमने? हमने तो ये कर दिया है अपने स्टेट में। ये कोई तुक है क्या? इससे तो अच्छा होता कि उत्तराखंड की जनता को अपना विकास का मॉडल दिखाते सिसोदिया। उत्तराखंड की जनता को बताते कि पहाड़ में डाक्टरों को रोकेंगे कैसे? कैसे कमाई होगी प्रदेश की यब बताते। आपदा की मार झेलते प्रदेश के लिए कौन सी योजनाएं हैं उनके पास? पहाड़ में कहां से निवेश कहां से लाएंगे ये ही बता देते। पलायन को कैसे रोकेंगे इसका विजन बताते उत्तराखंडयों को। दिल्ली में नौकरी कर रहे उत्तराखंडियों को कैसे वापस उत्तराखंड लाकर रोजगार देंगे ये ही बताते। आधारभूत रुप से विकसित शहर की सरकार जहां केवल कुछ चीजें फ्री कर के सत्ता पाई जा सकती हो वहां का मॉडल उत्तराखंड में चलना असंभव है।