कुंभ से लौटे नेपाल के पूर्व महाराज और उनकी पत्नी कोरोना संक्रमित

कुंभ से लौटे नेपाल के पूर्व महाराज और उनकी पत्नी कोरोना संक्रमित
कुंभ से लौटे नेपाल के पूर्व महाराज और उनकी पत्नी कोरोना संक्रमित

देहरादून: हरिद्वार महाकुंभ से नेपाल लौटते ही नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह और उनकी पत्नी कोमल शाह काठमांडू एयरपोर्ट पर कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव निकले हैं। बता दें कि नेपाल की मीडिया  में पूर्व नरेश और उनकी पत्नी के कुंभ में स्नान और उनकी संतो और आचार्यों से मुलाकात को प्रमुखता से जगह दी है। 
नेपाल के पूर्व नरेश ने अपनी भारत यात्रा के दौरान सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने गंगा का अभिषेक किया दक्षिण काली मंदिर के पीठाधीश्वर और निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि से आर्शीवाद लिया। मंदिर में परिसर में हुए अभिनंदन समारोह में संतों ने उन्हें नेपाल नरेश की उपाधि से अलंकृत किया और आशीर्वाद दिया कि वहां एक बार फिर राजशाही स्थापित होगी। इस दौरान उन पर  हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा भी की गई। समारोह में नेपाल के पूर्व नरेश ने कहा कि  कुंभ के विशेष अवसर पर हरिद्वार में गंगा स्नान व संतों का आशीर्वाद प्राप्त कर वे स्वयं को धन्य महसूस कर हैं। 
कौन हैं किंग ज्ञानेन्द्र?
 नेपाल में आज से 21 साल पहले राजपरिवार के 9 सदस्यों की हत्या कर दी गई. इसके बाद राजा ज्ञानेन्द्र शाह ने अगले 7 सालों तक सत्ता संभाली. साल 2008 में भारत के इस पड़ोसी देश ने राजशाही खत्म करके खुद को लोकतांत्रिक देश घोषित कर दिया
ये रहा इतिहास
नेपाल में राजपरिवार के शासन का सिलसिला काफी पुराना है. यहां पर एक ही राजपरिवार शाह वंश के सदस्यों का शासन रहा, जो कि खुद को प्राचीन भारत के राजपूतों का वंशज मानते थे. माना जाता है कि इन्होंने साल 1768 से साल 2008 तक देश पर शासन किया. हालांकि साल 2001 के जून में यहां रॉयल पैलेस के भीतर ही नरसंहार हुआ, जिसमें परिवार के 9 सदस्य मारे गए. माना जाता है कि काठमांडू स्थित नारायणहिति राजमहल में अंदरुनी अनबन की वजह से गुस्साएं क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने गोलियों की बौछार कर सबको मार डाला था. इसके तुरंत बाद क्राउन प्रिंस के चाचा ज्ञानेन्द्र शाह राजगद्दी पर बैठे. हालांकि साल 2008 में राज-तंत्र खत्म कर दिया गया और 28 मई को देश को Federal Democratic Republic घोषित कर दिया गया. इसके तुरंत बाद पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को राजमहल खाली करने को कहा गया. बदले में कुछ समय के लिए वे नागार्जुन पैलेस में रहे. इस पैलेस में पहले राजपरिवार गर्मी की छुट्टियां बिताने आया करता था. अब यहीं पर वे स्थाई तौर पर रहने लगे हैं.माना जाता है कि नारायणहिति राजमहल में अनबन की वजह से गुस्साएं क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने गोलियों की बौछार कर सबको मार डाला
दो बार मिली गद्दी
साल 1955 से 1972 तक नेपाल पर राज करने वाले महेन्द्र वीर बिक्रम शाह की संतान ज्ञानेन्द्र वीर बिक्रम शाह का जीवन गद्दी के मामले में हमेशा से ही उथल-पुथल से भरा रहा. जब पहली बार उन्हें नेपाल का शासक घोषित किया गया, तब उनकी उम्र महज 3 साल थी. ये साल 1950 की बात है, जब राजनैतिक अस्थिरता के कारण बच्चे ज्ञानेंद्र को पूरे एक साल के लिए देश का राजा घोषित कर दिया गया. ज्ञानेन्द्र की दूसरी पारी शाही परिवार की हत्या के बाद शुरू हुई, जो 2001 से लेकर 2008 तक चली. इस दौर को दुनिया के आखिरी हिंदू राजा का दौर माना जाता है जो नेपाल में लोकतंत्र के साथ ही खत्म हो गया.
कैसे हुई ज्ञानेंद्र की परवरिश
ज्ञानेंद्र का बचपन काफी अकेलेपन में बीता. क्राउन प्रिंस महेंद्र की दूसरी संतान ज्ञानेंद्र के जन्म पर राजपरिवार के ज्योतिष ने राजा से कहा कि उनका इस संतान के साथ रहना दुर्भाग्य ला सकता है. ये सुनते ही शिशु ज्ञानेंद्र को नारायणहिति राजमहल से उसकी नानी के पास रहने के लिए भेज दिया गया. जब ज्ञानेंद्र 3 ही साल के थे, तब राजनैतिक हलचल के कारण पूरा राजपरिवार राजसी खानदान के इस अकेले बच्चे को छोड़कर भारत आ गया. तब रापरिवार का अकेला पुरुष सदस्य होने के कारण 3 साल के बच्चे को ही देश का राजा मान लिया गया. तब बालक ज्ञानेंद्र के नाम पर ही सिक्के निकले, जिन पर नेपाल के नए राजा यानी ज्ञानेंद्र की तस्वीर थी. किंग को उस दौर में अपने खर्च के लिए 300,000 रुपए मिलते थे. सालभर बाद ज्ञानेंद्र का परिवार लौट आया और सत्ता वापस त्रिभुवन के हाथ में चली गई.
अच्छा पर्यावरणविद माना जाता था
राजा ज्ञानेंद्र की स्कूली शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई. वे दार्जिलिंग के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ते थे, जबकि ग्रेजुएशन काठमांडू से किया. पढ़ाई के बाद ज्ञानेंद्र अपने देश में रहते हुए पर्यावरण पर काम करने लगे. उन्हें काफी अच्छा पर्यावरणविद माना जाता था, जो जंगलों और पशुओं पर खूब काम किया करता. साल 1970 में अपनी ही सेकंड कजिन Komal Rajya Lakhsmi Devi से शादी के बाद ज्ञानेंद्र की 2 संतानें हुईं. आम बोलचाल और पर्यावरण पर अपने काम के बाद भी ज्ञानेंद्र को राजकाज चलाने में उतना सक्षम नहीं पाया गया. उन्होंने जब सत्ता संभाली, तब राजपरिवार के नरसंहार के कारण देश पहले से ही हिला हुआ था. इसके साथ ही देश में माओ आंदोलन भी सिर उठा रहा था. राजा ने वादा किया था कि वे 3 साल के भीतर देश में शांति ले आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका. ये भी कहा जाता है कि खुद माओवादियों की मांग थी कि देश से राजपरिवार की सत्ता खत्म कर उसे लोकतांत्रिक बनाया जाए. इसी डील के तहत ज्ञानेंद्र को गद्दी से हटना पड़ा.
अब भी है ढेरों-ढेर प्रॉपर्टी
राजगद्दी से हटने के बाद ज्ञानेंद्र को नारायणहिति राजमहल छोड़ना पड़ा. इसके अलावा जो भी उन्हें पूर्व राजा और अपने भाई बीरेंद्र से मिला था, वो सारी संपत्ति देश के हिस्से चली गई. हालांकि तब भी ज्ञानेंद्र के पास अच्छी-खासी प्रॉपर्टी है. माना जाता है कि पूरी दुनिया में उनके कई बिजनेस चल रहे हैं, जिनकी कीमत सैकड़ों अरब डॉलर में होगी. साल 2008 में केवल Soaltee Hotel में उनका इनवेस्टमेंट 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा का था. कई बड़ूी कंपनियों जैसे Himalayan Goodricke, Surya Nepal Tobacco और Annapurna Hotel में उनके भारी शेयर्स हैं. इसके साथ ही नेपाल में ही उनकी चाय की बागानें हैं, मालदीव में एक पूरा द्वीप उन्होंने खरीद रखा है और नाइजीरिया में तेल कंपनी में शेयर हैं.नेपाल में ही उनकी चाय की बागानें हैं, मालदीव में एक पूरा द्वीप उन्होंने खरीद रखा है और नाइजीरिया में तेल कंपनी में शेयर हैं
शक के दायरे में भी रहे ज्ञानेंद्र
वैसे राजपरिवार में हुए हत्याकांड के पीछे दबेछिपे ज्ञानेंद्र पर भी उंगलियां उठती रही हैं. कहा जाता रहा कि सत्ता पाने के लिए खुद उन्होंने अपने परिवार को मरवाया. इस मामले में जांच कमेटी की बात को भी संदिग्ध माना गया, जिसने क्राउन प्रिंस दीपेंद्र को मामले का जिम्मेदार ठहाराया था. सत्ता में आने के तुरंत बाद किंग ज्ञानेंद्र ने त्रिभुवन सदन को तुड़वा दिया, जहां नरसंहार हुआ था. इससे भी शक गहराया. यही वजह है कि जब राजसत्ता खत्म कर लोकतंत्र लागू हुआ तो लोग खुश थे लेकिन बीते 9 सालों में कोई विकास ने देखने पर नेपाली जनता एक बार फिर से राजशासन के बारे में सोचने लगी है. (साभार hindi.news18.com)