बड़ी खबर : मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना को मंजूरी, त्रिवेन्द्र कैबिनेट ने दी मंजूरी

बड़ी खबर : मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना को मंजूरी, त्रिवेन्द्र कैबिनेट ने दी मंजूरी
बड़ी खबर : मुख्यमंत्री घस्यारी योजना को मंजूरी, त्रिवेन्द्र कैबिनेट ने दी मंजूरी

देहरादून|: मुख्यमंत्री आवास में गुरुवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक हुई। बैठक में मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना पर कैबिनेट की मंजूरी मिली। अब घास के बोझ से महिलाओं को निजात मिलेगी। मुख्यमंत्री आवास में कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक  में 7 प्रस्तावों पर मुहर लगी।   बजट सत्र से पहले होने वाली इस कैबिनेट बैठक में सत्र से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।
1.मुख्यमंत्री  घसियारी कल्याण योजना पर कैबिनेट की मंजूरी,
2:-संस्कृत शिक्षा विभाग के 57 शिक्षकों को 155 शिक्षकों में समायोजित किया गया
3:- कृषि मंडी में अध्यक्ष एक बार ही नॉमिनेट किया जा सकेगा
4 वन भूमि पर दी गयी लीज के नवीनीकरण और नई  लीज  की मंजूरी दी गई।
5:- उत्तराखंड पुलिस दूरसंचार अधिनस्थ सेवा नियमावली 2021 कोई संशोधन नहीं
6 :- उत्तराखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन प्रोत्साहन एवं सुविधा अधिनियम 2020 की धारा 87 में संशोधन
7:- कोविड-19 के उपचार हेतु डेडीकेटेड 600 बेड के अस्पताल जिसमें 50 आईसीयू बेड में सम्मिलित होने के संबंध में निर्णय लिया गया।

क्या है घस्यारी कल्याण योजना?
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य में महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में राज्य सरकार तेजी से काम कर रही है। जंगली जानवरों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार जल्द ही मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याणकारी योजना शुरू करने जा रही है। इस योजना के तहत सस्ते गल्ले की तरह प्रदेश में 7771 केंद्रों के माध्यम से गांवों तक पशुओं के लिए सस्ता चारा उपलब्ध कराया जाएगा।
सहकारिता विभाग के मुताबिक इस योजना के तहत पशुचारे या साइलेज के उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। इस समय करीब आठ हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है। इसे बढ़ाकर 50 हजार मीट्रिक टन किया जाना है। इसके लिए प्लांट जल्द ही स्थापित किया जाएगा। 
पशुचारे पर प्रदेश सरकार अपनी तरफ से अनुदान भी देगी। इस समय पशु चारे पर प्रति किलोग्राम करीब 15 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। सरकार की योजना है कि पहाड़ों में यह चारा करीब तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से लोगों को मिले। यह उस काम के बोझ की तुलना में काफी कम है जो महिलाओं को घास के लिए उठाना पड़ता है।