वकील के खिलाफ मानहानिकारक लेख के लिए एक महीने की जेल की सजा पाने वाले पत्रकार को राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

वकील के खिलाफ मानहानिकारक लेख के लिए एक महीने की जेल की सजा पाने वाले पत्रकार को राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
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नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रस्वार को उस कन्नड़ साप्ताहिक अखबार के संपादक को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया, जिसे एक वकील के खिलाफ मानहानिकारक लेखों के लिए कारावास की सजा सुनाई गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि एक महीने की जेल एक उदार सजा है। चीफ जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ डी एस विश्वनाथ शेट्टी द्वारा दायर याचिका को खारिज करदिया। 
हाईकोर्ट ने शेट्टी की याचिका को केवल आंशिक रूप से अनुमति दी थी और उनकी सजा को एक वर्ष से घटाकर एक महीना कर दिया था। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील संजय एम नुली से कहा कि उन्हें सजा भुगतने दें। यह किस तरह की पत्रकारिता है? हमें वकीलों को भी बचाना है। एक महीना बहुत कम है।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि हाईकोर्ट के आदेश ने प्रेस की स्वतंत्रता और जानने के अधिकार का उल्लंघन किया है, जिसे संविधान के अनुच्छेद-19 (1) (ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है। शीर्ष अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर ध्यान दिया और कहा कि एक महीने की जेल की सजा एक उदार सजा है। 
याचिकाकर्ता कन्नड़ साप्ताहिक अखबार तुंगा वर्थे के मालिक, प्रकाशक व संपादक हैं। 2008 में वकील टीएन रत्नराज के खिलाफ लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी और वकील के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था।
मुआवजा राशि के ब्याज पर कर न लेने की मांग वाली याचिका खारिज
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सड़क हादसे में पीड़ित को मिलने वाली मुआवजा राशि के ब्याज पर कर न वसूलने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, इस याचिका पर सुनवाई कराने का कोई कारण नहीं है। याचिका में जो सवाल उठाया गया है, उस पर हम अपनी कोई राय नहीं दे रहे हैं। अमित साहनी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया था कि मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर कर नहीं लगाया जाना चाहिए। दरअसल सीबीडीटी ने कहा था कि मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण की ओर से तय मुआवजे पर मिलने वाले ब्याज पर कर लगाया जाना तर्कसंगत है।