उत्तराखंड की तस्वीर और उत्तराखंडियों की तकदीर बदलने का विजन लेकर लौटी भावना पांडे!

उत्तराखंड की तस्वीर और उत्तराखंडियों की तकदीर बदलने का विजन लेकर लौटी भावना पांडे!
उद्यमी और समाजसेवी भावना पांडे (फाइल)

देहरादून: आने वाले कुछ महीनों में उत्तराखंड 20 वर्ष का हो जाएगा लेकिन इन वर्षों में सूबे में कांग्रेस और बीजेपी ने ही शासन चलाया। ढेर सारे मुख्यमंत्री और दो-दो राजधानियां भी उत्तराखंड को मिली। लेकिन उत्तराखंड को क्या मिला? पलायन, बेरोजगारी और मूलभूत जरुरतों को तरसते उत्तराखंडी। इसके अलावा मिले बड़े-बड़े वादे जो धरातल पर उतरते-उतरते फिर से वादों की शक्ल पा जाते है। रही कसर इस महामारी ने पूरी कर दी है। स्वर्णिम भविष्य के लिए अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी लेकिन बदले में मिला दो रोटी का संघर्ष और फिर से वही समस्याएं जिनसे निजात पाने को बलिदान दिए गए थे। आखिर ऐसा क्यों हुआ? पर्यटन, बागवानी, कृषि, तीर्थाटन, जैविक उत्पादन की अपार संभावना वाले इस राज्य को सिर्फ बेकारी और अभाव ही क्यों मिले? कहां रह गई कमी? कैसै बदल सकती है उत्तराखंड की तस्वीर और उत्तराखंडियों की तकदीर? इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने के लिए उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली भावना पांडे  जो अब बड़ी उद्यमी और समाजसेवी के रुप में जानी और पहचानी जाती हैं, ने दो दशक बाद फिर से अपनी जन्मभूमि का रुख किया है। भावना पांडे ने दो दशक से भी ज्यादा का वक्त मुंबई और दिल्ली में बिताया। संघर्ष भरा जीवन गुजारने और अपनी मेहनत के बलपर भावना पांडे आज एक जानी मानी उद्यमी के तौर पर प्रसिद्ध हैं। मूल रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की रहने वाली भावना पांडे के मन में अब सिर्फ अपने प्रदेश के किसानों और युवाओं के लिए कुछ करने की ललक जागी है और वे इस ओर अग्रसर हो गई हैं।
स्वरोजगार और बाजार का विजन 
उद्यमी और समाजसेवी भावना पांडे का कहना है कि राज्य को बने बीस वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है और अब तक हमारे किसान और युवा आजीविका के लिए परेशान हैं। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? अब तक की सरकारों ने इस ओर सिर्फ नारे लगाने और अपने सत्ता स्वार्थ साधने के अलावा कुछ किया ही नहीं। उत्तराखंड संसाधनों से भरपूर राज्य है। हमारे किसानों का किसानी से मोहभंग आखिर क्यों हुआ। बंदर और सुअर तो पहले भी थे। आज कुछ ज्यादा हो गए होंगे। लेकिन जब हमारे किसानों को उनकी फसलों के लिए बाजार ही नहीं मिलेगा तो वो खेती क्यों करेंगे। युवा स्वरोजगार तो तभी करेगा ना जब उसको इसके लिए प्रेरित किया जाएगा और सुविधाएं दी जाएंगी। अगर हमारे प्रदेश का युवा व्यापार करना चाहता है, किसानी करना चाहता है तो उसे व्यापार के लिए ग्राहक और किसानी के लिए बाजार देना पड़ेगा। सरकारें ये सब न अब कर रही हैं और न उन्होंने इस ओर पहले ध्यान दिया।
एक प्लेटफॉर्म पर होंगे उद्यमी और बेरोजगार
भावना पांडे का कहना है कि वे इसी ओर अपना फोकस कर रही हैं। वो इसके लिए एक अलग से वेबसाइट भी डेवलप कर रही हैं। ये वेबसाइट व्यापार और रोजगार बाजार के नाम से होगी और इसी पर काम करेगी। इसके लिए इनदिनों काम किया जा रहा है और एक महीने के भीतर इस वेबसाइट को लॉन्च कर दिया जाएगा। इस वेबसाइट पर वे प्रदेश के तमाम बेरोजगार युवाओं का रजिस्ट्रेशन करेंगी। इस वेबसाइट पर व्यापार करने वाले तमाम उद्यमियों और कंपनियों को भी रजिस्टर किया जाएगा। ताकि नौकरी की चाह रखने वाला और इंपल्याइज को खोजने वाला एक ही मंच पर उपलब्ध हों।
 क्लस्टर आधारित खेती का विजन
दूसरी तरफ भावना पांडे का लक्ष्य है कि वो पहले फेज में उत्तराखंड के 35 हजार किसानों को जोड़ें। पहले चरण में हर विधानसभा से 500 किसानों का क्लस्टर बनाया जाएगा। किसानों के उत्पादों को खरीदने के लिए भावना पांडे ने देश की नामी गिरामी तीन कंपनियों से गठजोड़ किया है। ये कंपनियां उत्तराखंड के किसानों से उनके लोकल उत्पाद खरीदेंगी और बदले में उन्हें उत्पादों की कीमत के साथ साथ वैकल्पिक तौर पर दूसरा सामान भी मुहैया कराएंगी। इसके लिए भावना पांडे ने कंपनियों से करार किया है और ये कंपनियां अपने स्टोर ब्लॉक लेवल पर उत्तराखंड में खोलेंगी। इन स्टोर्स पर लोकल युवाओं को ही रोजगार मुहैया कराया जाएगा। इन स्टोर्स का नाम किसान हाट एंड मार्ट होगा।
भावना पांडे का कहना है कि वो युवाओं और किसानों के लिए प्रतिबद्ध होकर काम कर रही हैं और इसके लिए उन्होंने अपनी एक डेडिकेटेड टीम बनाई है। उन्हें पूरा भरोसा है कि जल्द ही हम उत्तराखंड की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल देंगे।