बड़ी खबर:राज्य के सात उत्पादों को मिला भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग

बड़ी खबर:राज्य के सात उत्पादों को मिला भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग

देहरादून:उत्तराखण्ड सचिवालय स्थित वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली सभागार में बौद्विक सम्पदा भारत के अंतर्गत उत्तराखण्ड राज्य के उत्पादों के भौगोलिक संकेतांक (ज्योग्राफिकल इण्डिकेशन) का वितरण समारोह कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें  कृषि मंत्री सुबोध उनियाल एवं उद्योग मंत्री  गणेश जोशी द्वारा राज्य के सात उत्पादों (कुमांऊ च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी राजमा, उत्तराखण्ड का भोटिया दन, उत्तराखण्ड ऐंपण, उत्तराखण्ड रिंगाल क्राफ्ट, उत्तराखण्ड ताम्र उत्पाद एवं उत्तराखण्ड थुलमा) को भौगोलिक संकेतांक( ज्योग्राफिक इन्डिकेशन) प्रमाण पत्र वितरित किये गए। कार्यक्रम के अवसर पर प्रधानमंत्री के सलाहकार भास्कर खुल्बे एवं सचिव डीपीआईआईटी भारत सरकार श्री अनुराग जैन द्वारा वीडियो कान्फ्र्रेन्स के माध्यम से प्रतिभाग किया गया। इस दौरान मा0 कृषि मंत्रीसुबोध उनियाल ने कहा कि राज्य के लिए बहुत बड़े गौरव का विषय है कि यहां के मौलिक उत्पादों को वैश्विक पहचान मिलती जा रही है।

कहा कि वोकल फॉर लोकल और स्थानीय प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार में जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय प्रोडक्ट को देश के साथ ही इंटरनेशनल मार्केट में पहचान दिलाने मे जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में और भी अनेक ऐसे परम्परागत कृषि उत्पाद है जो अपने भौगोलिक क्षेत्र विशेष के आधार पर लगातार वैश्विक पहचान बनाते जा रहे है। उत्तराखण्ड में कुल 6.48 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि हैं जिसमें 3.50 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर परम्परागत कृषि उत्पादों का उत्पादन हो रहा है। अभी तक तेजपत्ता प्रदेश का पहला जीआई टैग प्राप्त करने वाला उत्पाद था। उन्होंने कहा कि उपरोक्त के अतिरिक्त उत्तराखण्ड सरकार के निर्देशन पर उत्तराखण्ड लाल चावल, बेरीनाग चाय, उत्तराखण्ड गहत, उत्तराखण्ड मण्डुआ, उत्तराखण्ड झंगोरा, उत्तराखण्ड बुरांस सरबत, उत्तराखण्ड काला भट्ट, उत्तराखण्ड चौलाई/रामदाना, अल्मोड़ा लाखोरी मिर्च, उत्तराखण्ड पहाड़ी तोर दाल, उत्तराखण्ड माल्टा फ्रूट जैसे 11 कृषि उत्पादों का जीआई टैग लिये जाने का कार्य भी फाईल कर दिया गया है।

क्या है ‘जीआई टैग’ (GI Tag)?     
‘कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) के अनुसार, जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता  है।
जीआई टैग ऐसे कृषि, प्राकृतिक या एक निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है, जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होता है और जिसके कारण इसमें अद्वितीय विशेषताओं और गुणों का समावेश होता है।  
भौगोलिक संकेत बौद्धिक संपदा अधिकारों का हिस्सा हैं, जो ‘औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय’ (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) का तहत आते हैं।
भारत में, भौगोलिक संकेतक के पंजीकरण को ‘माल के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ ('Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act,1999') द्वारा विनियमित किया जाता है।
यह अधिनियम 13 सितंबर, 2003 को प्रभाव में आया था।
इसका विनियमन भौगोलिक पंजीयक रजिस्ट्रार (Registrar of Geographical Indications) द्वारा किया जाता है। 
भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री का मुख्यालय चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
एक भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष की अवधि के लिये वैध होता है।