उत्तराखंड में कहर बरपा रहे कोरोना के ये 16 वैरियंट

उत्तराखंड में कहर बरपा रहे कोरोना के ये 16 वैरियंट
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देहरादून: उत्तराखंड में कोरोनावायरस के 16 वैरिएंट व म्यूटेशन लोगों पर कहर बरपा रहे हैं। उत्तराखंड से जीनोम सीक्वेसिंग के लिए भेजे गए कोरोना वायरस सैंपलों की जांच रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। उत्तराखंड के भेजे गए सैंपलों में से सबसे अधिक में सामान्य कोरोना वायरस सार्स कोविड टू पाया गया है। 35 सैंपलों में यूके वैरिएंट के तीन अलग अलग म्यूटेशन पाए गए हैं। जबकि इसके अलावा राज्य से भेजे गए सैंपलों में 12 तरह के अन्य म्यूटेशन भी मिले हैं।
बता दें कि कोरोना वायरस लगातार अपने रूप बदल रहा है। चीन के वुहान से शुरू हुआ यह वायरस तकरीबन डेढ़ साल से अभी तक कई बड़े बदलाव हो चुके हैं। जिन्हें अलग अलग वैरिएंट के रूप में पहचाना गया है। देश में चल रही कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सामान्य कोरोना वायरस के अलावा यूके वैरिएंट व डबल म्यूटेंट भी कहर बरपा रहे हैं। इसी के तहत राज्य से भी नई दिल्ली स्थित लैब में सैंपल जीनोम सीक्वेसिंग के लिए भेजे गए थे। जिसमें राज्य भर में 12 प्रकार के प्रारूपों की पुष्टि हुई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है।
285 सैंपलों की आई रिपोर्ट
राज्य से अभी तक कुल 851 सैंपलों को जीनोम सीक्वेसिंग के लिए नई दिल्ली स्थित लैब में भेजा जा चुका है। जिसमें से 285 सैंपलों की रिपोर्ट मिल गई हैं। जबकि 531 की रिपोर्ट आना बाकी है। इसमें 208 सैंपलों में सामान्य कोरोना वायरस यानी सार्स कोविड टू वायरस पाया गया है जबकि 32 सैंपलों में यूके वैरिएंट बी117, एक सैंपल में यूके वैरिएंट का बी16171 जबकि दो सैंपलों में बी16172 वैरिएंट पाया गया है। इसके अलावा राज्य से भेजे गए 42 सैंपलों में 12 अन्य प्रकार के म्यूटेशन पाए गए हैं।
वायरस के ये वैरिएंट व म्यूटेशन मौजूद हैं राज्य में
सामान्य कोरोना वायरस, यूके वैरिएंट के तीन प्रारूप, पी681आर, पी681एच, पी681आरक्यू1071एच, क्यू677एच, एन440के, एन501वाई, ई484के, एल452आर, एल452आरपी681आर, एन501वाईपी681एच, ई484क्यूएल452आरपी681आरक्यू1071एच और डीएन50एन म्यूटेशन शामिल हैं।
वैरिएंट और म्यूटेशन में फर्क
दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ आशुतोष सयाना ने बताया कि वायरस में हुए बड़े बदलाव को अलग नाम देकर वेरिएंट के रूप में पहचाना जाता है। जबकि वायरस में होने वाले छोटे बदलाव को म्यूटेशन के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि वायरस में लगातार बदलाव होते रहते हैं और इसीलिए लगातार जीनोम सीक्वेसिंग के जरिए उसमें हो रहे बदलावों को पहचाने की कोशिश की जाती है।